Thursday, February 28, 2013

Yaa Sai !

साँझ के सूरज में
धरती की धूल भी
सोने सी दमकती है

दोपहर की तमतम गर्मी में
झील का ठंडा पानी
चांदी की सिक्कों सी चमकती है

भोर के सुखद आलिंगन में
पाँव तले  ओस लदी  घाँस
मखमल सी फिसलती है

मामूली सी धूल
निश्चल सा पानी
पाँव तले की दुर्बल घाँस
रवि की अलग अलग छवि
में अनजान ही निखरी है

या साईं

मेरा गुस्सा, मेरा प्यार
मेरी हिम्मत और मेरा डर
मेरी वादियाँ मेरे शिखर
मेरी लडखडाहट और मेरे पर

यह सब

मुझ मामूली, दुर्बल, निश्चल में
तेरी ही तो हलचल है