Thursday, November 1, 2007

Teri Ek Muskaan

रोज़ ओस इकट्ठी करके उसमे रखी है भिगोके मुट्ठी भर चांदनी,
बारिश के निकल जाने के बाद, तारों से झूलती कुछ बूंदों को पिरोया है,
पहले पहर में जगते एक नन्हें से गुलाब के कलि की अंगडाई चुराई है,
एक छोटे से बिल्ली के बच्चे के डगमगाते कदम हैं,
कुछ गजलों के अल्फाज़ हैं
एक तनहा समंदर की आवाज़ हैं,
जिनके साथ बैठ के लिखी हैं ऐसी कई नादान नासमझ कवितायेँ
उन रातों की खामोशी लाया हूँ,
और लाया हूँ मेरे दिल का वो बचपन
जिसे एक नज़र, एक बात भी कर दे ज़ख्म.


इन सब के बीच बैठा हूँ,
कुछ ज़मीन पे फैअली पड़ी हैं,
और कुछ गोद में रखी हैं,
ये सब चीज़ें जिन्हें देख कर मैं कभी मुस्काया हूँ,
और फिर संजोके रखा मेरी यादों के संदूक में,
ये कुछ पल - मेरे जीवन की पूँजी,
सोचा ये सब तुझे दे दूंगा.

यही तो दौलत हैं मेरे पास
जिससे खरीदने निकला हूँ....


तुझसे तेरी एक मुस्कान.




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(May God bless Kedar, and Google Indic Transliteration)

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